शिबू सोरेन: आदिवासी नेता, झारखंड आंदोलन के ‘दिशोम गुरु’ का जीवन और विरासत
‘दिशोम गुरु’ के नाम से प्रसिद्ध शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और एक महान आदिवासी नेता थे। 4 अगस्त 2025 को 81 वर्ष की आयु में उनका निधन दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में हुआ। लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली, जिससे झारखंड सहित पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई
- शिबू सोरेन: आदिवासी नेता, झारखंड आंदोलन के ‘दिशोम गुरु’ का जीवन और विरासत
- जीवन परिचय और प्रारंभिक संघर्ष
- राजनीतिक करियर और उपलब्धियाँ
- स्वास्थ्य, निधन का कारण और समय
- देशभर में संवेदना और श्रद्धांजलि
- नेतृत्व और विरासत
- विवाद और मुकदमें
- ✍️ अध्याय 1: प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
- ✍️ अध्याय 2: राजनीतिक जीवन की शुरुआत
- ✍️ अध्याय 3: सांसद के रूप में लंबी पारी
- ✍️ अध्याय 4: केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य
- ✍️ अध्याय 5: झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में भूमिका
- ✍️ अध्याय 6: झारखंड आंदोलन और राज्य निर्माण
- ✍️ अध्याय 7: विवाद और कानूनी चुनौतियाँ
- ✍️ अध्याय 8: अंतिम दिन और निधन (4 अगस्त 2025)
- ✍️ अध्याय 9: शोक संदेश और राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
- ✍️ अध्याय 10: विरासत और भविष्य
जीवन परिचय और प्रारंभिक संघर्ष
🏞️ आदिवासी पृष्ठभूमि और राजनीतिक सक्रियता
11 जनवरी 1944 को रामगढ़ के नेमरा गाँव में जन्मे शिबू सोरेन का बचपन संघर्षों में बीता। उनके पिता की हत्या ने उन्हें आदिवासी अधिकारों की लड़ाई के लिए प्रेरित किया।
18 वर्ष की उम्र में उन्होंने सांथाल नवयुवक संघ की स्थापना की और 1972 में Binod Bihari Mahato व A.K. Roy के साथ मिलकर JMM का गठन किया — जिसका उद्देश्य एक अलग झारखंड राज्य की स्थापना था।
राजनीतिक करियर और उपलब्धियाँ
- लोकसभा सांसद: उन्होंने 1980 से लेकर कई वर्षों तक सात बार लोकसभा का चुनाव जीता।
- मुख्यमंत्री पद: तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे (2005, 2008–09, 2009–10), हालांकि कभी पूर्ण कार्यकाल नहीं मिला।
- संघ सरकार में मंत्री: केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में तीन बार सेवा की।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी आदिवासियों के भूमि अधिकारों की लड़ाई और झारखंड राज्य की स्थापना (2000)।
स्वास्थ्य, निधन का कारण और समय
शिबू सोरेन जून 2025 से गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे, जहाँ उन्हें किडनी, दिल और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का सामना था। लंबे समय वेंटिलेटर पर रहने के बाद उन्होंने 4 अगस्त 2025 की सुबह 8:56 बजे अंतिम सांस ली।
झारखंड सरकार ने 4–6 अगस्त तक तीन दिवसीय राजकीय शोक घोषित किया; सभी कार्यालय बंद रहे और राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रखा गया।
देशभर में संवेदना और श्रद्धांजलि
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए उन्हें एक समर्पित, जमीन से जुड़े नेता बताया जो आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कटिबद्ध थे।
- गृह मंत्री अमित शाह, राहुल गांधी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, युवाओं के नेता राहुल सहित कई ने भावभीनी श्रद्धांजलि दीं।
- बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व लालू प्रसाद यादव ने भी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त कीं।
नेतृत्व और विरासत
शिबू सोरेन की राजनीति में संघर्ष, सहानुभूति और आत्म-निवेदन की अनूठी छवि थी। उन्हें आदिवासी लोगों के लिए लड़ने वाला नेता माना जाता था जिसने जीवनभर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी।
उनकी राजनीतिक विरासत उनके पुत्र Hemant Soren ने आगे बढ़ाई, जो वर्तमान झारखंड मुख्यमंत्री हैं। JMM के नेतृत्व में सोरेन परिवार आज भी राज्य राजनीति में अग्रणी है।
विवाद और मुकदमें
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा विवादों से भी अछूती नहीं रही:
- उनके निजी सचिव की हत्या में दोषसिद्धि हुई थी, लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी किया।
- 1970 के दशक में JMM आंदोलनों के दौरान हिंसा से जुड़े मामले भी सामने आए, जिनमें से कई में उन्हें दोषमुक्त किया गया।
इन विवादों के बावजूद उनकी लोकप्रियता और आदिवासी नेतृत्व के प्रति सम्मान ज्यों का त्यों रहा।
✍️ अध्याय 1: प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
- जन्म: 11 जनवरी 1944, नेमरा गाँव, रामगढ़, बिहार (अब झारखंड)
- आदिवासी समुदाय: संथाल जनजाति
- परिवार: पिता – सोबरन सोरेन (जिनकी हत्या ज़मींदारों ने की थी), पत्नी – रूपी सोरेन, पुत्र – हेमंत सोरेन
- शिक्षा: गांव के स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई, फिर आंदोलन की राह
➡️ प्रभाव: बचपन में ही अन्याय के खिलाफ लड़ाई का संकल्प, जिसका असर पूरे राजनीतिक जीवन पर पड़ा।
✍️ अध्याय 2: राजनीतिक जीवन की शुरुआत
- 1969 में “संथाल नवयुवक संघ” की स्थापना
- 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना
- उद्देश्य: आदिवासियों के जल, जंगल, ज़मीन के अधिकार और अलग झारखंड राज्य की मांग
- शुरुआती आंदोलन: कोयला खनन कंपनियों और भूमि हथियाने वाले ज़मींदारों के खिलाफ जन संघर्ष
➡️ महत्व: JMM ने आदिवासी समाज को एकजुट किया और नई राजनीतिक चेतना का जन्म दिया।
✍️ अध्याय 3: सांसद के रूप में लंबी पारी
- 1980 से 2019 तक कई बार लोकसभा चुनाव जीतना (7 बार सांसद)
- क्षेत्र: दुमका, झारखंड
- जनता के मुद्दों – शिक्षा, स्वास्थ्य, अधिकारों – को संसद में प्रमुखता देना
➡️ विशेषता: झारखंड के आम आदिवासी की आवाज़ को संसद तक पहुँचाने वाले पहले बड़े नेता।
✍️ अध्याय 4: केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य
- कोयला मंत्री (UPA सरकार में)
- पर्यावरण, खनन, और आदिवासी सुरक्षा जैसे संवेदनशील मामलों में निर्णय
- भ्रष्टाचार और विसंगतियों के बीच भी आदिवासी हितों पर ध्यान
➡️ नोटेबल: अपने मंत्रालय में रहते हुए देश के खनिज संसाधनों पर आदिवासियों का अधिकार सुनिश्चित करने की कोशिश।
✍️ अध्याय 5: झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में भूमिका
- तीन बार मुख्यमंत्री (2005, 2008, 2009–2010)
- कार्यकाल अल्पकालिक रहे लेकिन आदिवासी नेतृत्व का प्रतीक बने
- हेमंत सोरेन की अगली पीढ़ी के रूप में भूमिका निर्माण
➡️ विश्लेषण: राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद सोरेन का चेहरा झारखंड की आत्मा बना रहा।
✍️ अध्याय 6: झारखंड आंदोलन और राज्य निर्माण
- झारखंड को बिहार से अलग राज्य बनाने की आंदोलन की लंबी लड़ाई
- 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य की स्थापना
- JMM और शिबू सोरेन की ऐतिहासिक भूमिका
➡️ फैक्ट: शिबू सोरेन झारखंड राज्य के जन्मदाता माने जाते हैं।
✍️ अध्याय 7: विवाद और कानूनी चुनौतियाँ
- 1994 में निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या का मामला
- दोषी ठहराए गए, फिर हाईकोर्ट से बरी
- संसद रिश्वत कांड (1993) का भी उल्लेख
➡️ स्पष्टीकरण: इन विवादों ने उनकी छवि को प्रभावित किया, लेकिन आदिवासी समाज में उनका सम्मान अडिग रहा।
✍️ अध्याय 8: अंतिम दिन और निधन (4 अगस्त 2025)
- स्थान: सर गंगा राम अस्पताल, दिल्ली
- आयु: 81 वर्ष
- बीमारी: किडनी, हृदय और फेफड़ों से जुड़ी जटिल समस्याएं
- मृत्यु: 4 अगस्त 2025 को सुबह 8:56 बजे
➡️ सरकारी घोषणा: झारखंड सरकार ने 3 दिन का राजकीय शोक घोषित किया।
✍️ अध्याय 9: शोक संदेश और राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: “शिबू सोरेन जमीन से जुड़े जननायक थे”
- राष्ट्रपति, गृह मंत्री, राहुल गांधी, राजनाथ सिंह, नीतीश कुमार, लालू यादव सहित कई नेताओं की श्रद्धांजलि
- झारखंड में स्कूल-कॉलेज बंद, तिरंगा झुका
➡️ जनभावना: शिबू सोरेन का निधन केवल एक नेता की मृत्यु नहीं, बल्कि एक आंदोलन की आवाज़ का शांत होना था।
✍️ अध्याय 10: विरासत और भविष्य
- हेमंत सोरेन ने पिता की विरासत को संभाला
- JMM की विचारधारा का विस्तार
- आदिवासी आंदोलन की चेतना जीवित
- शिबू सोरेन के नाम पर संस्थान, विश्वविद्यालय और स्मारक प्रस्तावित
➡️ उपसंहार: शिबू सोरेन एक नाम नहीं, आंदोलन थे। उनकी विरासत झारखंड के जंगलों, पहाड़ों और लोगों के दिलों में जीवित रहेगी।
📢 निष्कर्ष
शिबू सोरेन, जिन्हें ‘दिशोम गुरु’ कहा जाता था, भारत की राजनीति में न सिर्फ़ एक नाम थे, बल्कि एक सोच और संघर्ष की मिसाल थे। उनका निधन एक युग का अंत है, लेकिन उनकी विचारधारा आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती रहेगी।